शिमला समझौता 2 जुलाई 1972, Shimla Agreement
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच एक बड़ा
युद्ध लड़ा जा चुका था, 93 हजार पाकिस्तानी फौजी भारत में युद्धबंदी थे और
पाकिस्तान से टूट कर पूर्वी पाकिस्तान भी बंगलादेश बन गया था।विश्वास बहाली
और कड़वाहट को कम करने के मकसद से इंदिरा और भुट्टो ने एक मंच पर आने का
फैसला किया।भारत-पाकिस्तान के बीच शिखर-वार्ता 28 जून से 1 जुलाई तक तय की
गयी। चार दिन तक चलने वाली इस वार्ता में सात दौर की वार्ता होनी थी। 28
जून को ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो अपनी बेटी
बेनजीर भुट्टो के साथ वार्ता के लिए शिमला पहुंचे।पाकिस्तान द्वारा
बंगलादेश को मान्यता, भारत-पाकिस्तान के राजनयिक संबंध, व्यापार, कश्मीर
में नियंत्रण रेखा स्थापित करना और युद्धबंदियों की रिहाई जैसे मुद्दों पर
बातचीत चलती रही। लेकिन कुछ मुद्दों पर एक राय नहीं बन पा रही थी। दोनों
देशों के प्रतिनिधी और पत्रकार किसी समझौते की उम्मीद छोड़ चुके थे लेकिन
अगले दिन फिर 2 जुलाई को दोनों पक्षों में बातचीत हुई। आखिरकार 2 और 3
जुलाई की रात 12 बजकर 40 मिनट पर दोनों देशों ने समझौता पर हस्ताक्षर कर
दिए। शिमला समझौते में दोनों देशों ने महत्वपूर्ण बातों पर सहमति जाहिर की
थी। इस समझौते में भारत-पाकिस्तान ने तय किया कि 17 दिसम्बर 1971 को
पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति
में थीं, उस रेखा को ”वास्तविक नियंत्रण रेखा“ माना
जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की
कोशिश नहीं करेगा। शिमला समझौते के बाद नियंत्रण रेखा को बहाल किया गया।
लेकिन पाकिस्तान अपने इस वाएदे को कभी नहीं पूरा किया। शिमला में हुए
समझौते के बाद भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया और
पाकिस्तानी जमीन भी वापस कर दी | भारत में शिमला समझौते का विरोध किया जा
रहा था। बंगबंधु की नेतृत्व में बांग्लादेश की आजादी की मांग उठने लगी।
राष्ट्रपति याह्या खान ने आंदोलन को कुचलने के लिए 25 मार्च 1971 को सैनिक
कार्रवाई के आदेश दे दिए। सैनिक कार्रवाई में करीब 3 लाख बांग्लादेशी मारे
गए। कई महीने तक चलने वाली राजनीतिक-स्तर की बातचीत के बाद 3 जुलाई 1972 में शिमला में भारत-पाकिस्तान शिखर बैठक हुई। शिमला समझौते के तहत एक समझौते पर इंदिरा गाधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे।
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