हुमायूँ , Humayun (1508 – 1556)
हुमायूँ एक महान मुगल शासक थे। प्रथम
मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ (६ मार्च १५०८ – २२ फरवरी,
१५५६) थे।बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने १५३० में भारत की राजगद्दी
संभाली और उनके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले
लिया। बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर
दोनों भाइयों में लड़ाई न हो। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी
बने। हुमायूँ का शासन अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों
पर १५३०-१५४० और फिर १५५५-१५५६ तक रहा।
भारत में उन्होने शेरशाह सूरी से हार पायी। १० साल बाद, ईरान साम्राज्य की मदद से वे अपना शासन दोबारा पा सके। इस के साथ ही, मुग़ल दरबार की संस्कृति भी मध्य एशियन से इरानी होती चली गयी।हुमायूँ के बेटे का नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था।हुमायू की मृत्यु एक अचानक घटना की वजह से हुई थी वह सीढ़ियों से गिर पड़े थे.
भारत में उन्होने शेरशाह सूरी से हार पायी। १० साल बाद, ईरान साम्राज्य की मदद से वे अपना शासन दोबारा पा सके। इस के साथ ही, मुग़ल दरबार की संस्कृति भी मध्य एशियन से इरानी होती चली गयी।हुमायूँ के बेटे का नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था।हुमायू की मृत्यु एक अचानक घटना की वजह से हुई थी वह सीढ़ियों से गिर पड़े थे.
सैन्य इतिहास
कालिंजर का आक्रमण (1531 ई.) कालिंजर पर आक्रमण हुमायूँ का पहला आक्रमण था।
दौहरिया का युद्ध (1532 ई.) हुमायूँ की सेना एवं महमूद लोदी की सेना के बीच अगस्त, 1532 ई. में दौहारिया नामक स्थान पर संघर्ष हुआ, जिसमें महमूद की पराजय हुई।
चुनार का घेरा (1532 ई.) शेरशाह (शेर ख़ाँ) के क़ब्ज़े में था। 4 महीने लगातार क़िले को घेरे रहने के बाद शेर ख़ाँ एवं हुमायुँ में एक समझौता हो गया।
बहादुर शाह से युद्ध (1535-1536 ई.) गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1531 ई. में मालवा तथा 1532 ई. में ‘रायसीन’ के क़िले पर अधिकार कर लिया।
शेरशाह से संघर्ष (1537 ई.-1540 ई.)
1537 ई. के अक्टूबर महीने में हुमायूँ ने पुनः चुनार के क़िले पर घेरा डाला। शेर ख़ाँ (शेरशाह) के पुत्र कुतुब ख़ाँ ने हुमायूँ को लगभग छः महीने तक क़िले पर अधिकर नहीं करने दिया।
चौसा का युद्ध
26 जून, 1539 ई. को हुमायूँ एवं शेर ख़ाँ की सेनाओं के मध्य गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित ‘चौसा’ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ। चौसा के युद्ध में सफल होने के बाद शेर ख़ाँ ने अपने को ‘शेरशाह’ (राज्याभिषेक के समय) की उपाधि से सुसज्जित किया|
बिलग्राम की लड़ाई (17 मई, 1540 ई.)
बिलग्राम या कन्नौज में लड़ी गई इस लड़ाई में हुमायूँ के साथ उसके भाई हिन्दाल एवं अस्करी भी थे, हुमायूँ पराजित हुआ ।
शेरशाह से परास्त होने के उपरान्त हुमायूँ सिंध चला गयादौहरिया का युद्ध (1532 ई.) हुमायूँ की सेना एवं महमूद लोदी की सेना के बीच अगस्त, 1532 ई. में दौहारिया नामक स्थान पर संघर्ष हुआ, जिसमें महमूद की पराजय हुई।
चुनार का घेरा (1532 ई.) शेरशाह (शेर ख़ाँ) के क़ब्ज़े में था। 4 महीने लगातार क़िले को घेरे रहने के बाद शेर ख़ाँ एवं हुमायुँ में एक समझौता हो गया।
बहादुर शाह से युद्ध (1535-1536 ई.) गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1531 ई. में मालवा तथा 1532 ई. में ‘रायसीन’ के क़िले पर अधिकार कर लिया।
शेरशाह से संघर्ष (1537 ई.-1540 ई.)
1537 ई. के अक्टूबर महीने में हुमायूँ ने पुनः चुनार के क़िले पर घेरा डाला। शेर ख़ाँ (शेरशाह) के पुत्र कुतुब ख़ाँ ने हुमायूँ को लगभग छः महीने तक क़िले पर अधिकर नहीं करने दिया।
चौसा का युद्ध
26 जून, 1539 ई. को हुमायूँ एवं शेर ख़ाँ की सेनाओं के मध्य गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित ‘चौसा’ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ। चौसा के युद्ध में सफल होने के बाद शेर ख़ाँ ने अपने को ‘शेरशाह’ (राज्याभिषेक के समय) की उपाधि से सुसज्जित किया|
बिलग्राम की लड़ाई (17 मई, 1540 ई.)
बिलग्राम या कन्नौज में लड़ी गई इस लड़ाई में हुमायूँ के साथ उसके भाई हिन्दाल एवं अस्करी भी थे, हुमायूँ पराजित हुआ ।
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