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सिन्धु घटी सभ्यता ,Indus Valley Civilization

सिन्धु घटी सभ्यता ,Indus Valley Civilization

सिंधु घाटी सभ्यता(३३००-१७०० ई.पू.). विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। यह हड़प्पा सभ्यता और ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे।दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को अबतक का खोजा गया , सिंधु घाटी सभ्यता का, सबसे प्राचीन नगर माना गया है  । 1826 चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 मे लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया।  १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया।  प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण तथा प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।सर्वाधिक मान्यता 2300-1750 ई. पूर्व है | लोगों का जीवन , नगरीकृत संस्कृति थी, कृषि एवं पशुपालन इनका मुख्य व्यवसाय था. ये गेहूं, जौ, मटर, तरबूज आदि का उत्पादन करते थे और बैल, हांथी, भैंस, घोड़े,सूअर आदि का पालन करते थे. सूती व ऊनी धागा तैयार करना एवं उनसे कपडे बनाना जानते थे. सिन्धु समाज मातृसत्तात्मक था. सभ्यता के लोगों की कलात्मक जानकारी उनके बर्तनों पर चित्रकारी, सिक्कों के चलन, और आभूषण आदि से पता चलती है. वे प्रकृति पूजा व पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे. उनकी मुहरों से भाषा एवं लिपि का ज्ञान होता है जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है.नगर तथा भवन निर्माण :- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना सबसे विकसित थी लगभग 33 फीट चौड़ी सड़कें और पक्के मकान, चौराहे बने थे. नगरों में समकोण आधारित सड़कें, कब्रिस्तान, अनाज भंडारगृह और पक्की ईंटों के तालाब (सामूहिक स्नानागार) आदि का निर्माण था जो की तत्कालीन सभ्यता में अद्वितीय था. यहाँ के भवनों में दरवाजे, खिड़कियाँ, रोशनदान, पक्के फर्श, स्नान गृह, नालियां आदि बने थे.सिन्धु सभ्यता और सुमेरियन सभ्यता के बीच घनिष्ठ व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध थे.सुमेरियन साक्ष्यों में सिन्धु सभ्यता का उल्लेख “दिलमुन” नाम से है. सुमेरियन एवं मेसोपोटामियन सभ्यता में भी पक्की ईंटों के भवन, पीतल व तांबे का प्रयोग, चित्रमय मुहरें आदि प्रचलित थी.मोहनजोदड़ो के धान्य कोठार इस सभ्यता की सबसे बड़ी संरचना है.लोथल (भोगवा नदी के तट पर) में सिन्धु सभ्यता का एकमात्र बंदरगाह स्थित था. सिन्धु क्षेत्र को मेहुल भी कहा गया है. चावल के साक्ष्य लोथल व रंगपुर से मिले है. इस सभ्यता का सबसे विकसित स्थल धौलावीरा था.हडप्पाकालीन लोगों को लोहे का ज्ञान नहीं था.
यह सभ्यता मुख्यतः 2500 ई.पू. से 1800 ई. पू. तक रही। ऐसा आभास होता है कि यह सभ्य्ता अपने अंतिम चरण में ह्वासोन्मुख थी। इस समय मकानों में पुरानी ईंटों के प्रयोग की जानकारी मिलती है। इसके विनाश के कारणों पर विद्वान एकमत नहीं हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे: बर्बर आक्रमण, जलवायु परिवर्तन एवं पारिस्थितिक असंतुलन, बाढ तथा भू-तात्विक परिवर्तन, महामारी, आर्थिक कारण। मोहेन्जो दरो मे नग‍र और जल निकास कि वय्व्वस्था से महामरी कि सम्भावन कम लगति है। भिशन अग्निकान्द के भि प्रमान प्राप्त हुए है। मोहेन्जोदरो के एक कमरे से १४ नर कन्काल मिले है जो आक्रमन, आगजनि, महामारी के संकेत है।

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख भारत में लोकेशन

गुजरात  लोथल,सुरकोतदा,रंगपुर,रोजदी,मालवड,देसलपुर,धोलावीरा,प्रभाषपाटन,भगतराव,
हरियाणा  राखीगढ़ी, भिर्दाना, बनावली, कुणाल, मीताथल
पंजाब    रोपड़, बाड़ा
महाराष्ट्र   दायमाबाद
उत्तर प्रदेश    आलमगीरपुर, रावण उर्फ़ बडागांव,  अम्बखेडी
जम्मू कश्मीर   मांडा
राजस्थान   कालीबंगा

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