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मौर्य वंश , Maurya Empire

मौर्य राजवंश (३२२-१८५ ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली एवं महान राजवंश था। इसने १३७ वर्ष भारत में राज्य किया। ईसा पूर्व 326 में सिकन्दर की सेनाएँ पंजाब के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। मध्यप्रदेश और बिहार में नंद वंश का राजा धननंद शासन कर रहा था। सिकन्दर के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं। मगध के शासक के पास विशाल सेना अवश्य थी किन्तु जनता का सहयोग उसे प्राप्त नहीं था। प्रजा उसके अत्याचारों से पीड़ित थी। मौर्या वंश स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं उसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक जाता है।

शासकों की सूची

  1. चन्द्रगुप्त मौर्य 322 ईसा पूर्व- 298 ईसा पूर्व
  2. बिन्दुसार 297 ईसा पूर्व -272 ईसा पूर्व
  3. अशोक 273 ईसा पूर्व -232 ईसा पूर्व
  4. दशरथ मौर्य 232 ईसा पूर्व- 224 ईसा पूर्व
  5. सम्प्रति 224 ईसा पूर्व- 215 ईसा पूर्व
  6. शालिसुक 215 ईसा पूर्व- 202 ईसा पूर्व
  7. देववर्मन् 202 ईसा पूर्व -195 ईसा पूर्व
  8. शतधन्वन् मौर्य 195 ईसा पूर्व 187 ईसा पूर्व
  9. बृहद्रथ मौर्य 187 ईसा पूर्व- 185 ईसा पूर्व
पुराणों के अनुसार अशोक के बाद कुणाल गद्दी पर बैठा। अशोक के और भी पुत्र थे। राजतरंगिणी के अनुसार जलौक कश्मीर का स्वतंत्र शासक बन गया। तारनाथ के अनुसार वीरसेन अशोक का पुत्र था, जो गांधार का स्वतंत्र शासक बन गया। इस प्रकार हम देखते हैं कि अशोक की मृत्यु के बाद ही साम्राज्य का विघटन हो गया।अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया, इस धर्म के उपदेशों को न केवल देश में वरन विदेशों में भी प्रचारित करने के लिए प्रभावशाली क़दम उठाए। अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को अशोक ने इसी कार्य के लिए श्रीलंका भेजा था।अशोक के बाद ही मौर्य साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया था और लगभग 50 वर्ष के अन्दर इस साम्राज्य का अंत हो गया। मौर्य साम्राज्य की सामाजिक आर्थिक, शासन प्रबंन्ध तथा धर्म और कला सम्बन्धी जानकारी के लिए कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मैगस्थनीज़ कृत इंडिका तथा अशोक के अभिलेखों का ठीक से अर्थ लगाया जाए तो पता चलेगा कि वे एक दूसरे के पूरक हैं।चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर (अलेक्ज़ेन्डर) के सेनापति सेल्यूकस को ३०५ ईसापूर्व के आसपास हराया था। ग्रीक विवरण इस विजय का उल्ले़ख नहीं करते हैं पर इतना कहते हैं कि चन्द्रगुप्त (यूनानी स्रोतों में सैंड्रोकोटस नाम से ) और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई थी जिसके अनुसार सेल्यूकस ने कंधार , काबुल, हेरात और बलूचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए थे। इसके साथ ही चन्द्रगुप्त ने उसे ५०० हाथी भेंट किए थे। चन्द्रगुप्त ने या उसके पुत्र बिंदुसार ने सेल्यूकस की बेटी से वैवाहिक संबंध स्थापित किया थासेल्यूकस ने मेगास्थनीज़ को चन्द्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा था। अशोक के शिलालेख कर्नाटक में चित्तलदुर्ग, येरागुडी तथा मास्की में पाए गए हैं। चन्द्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार सत्तारूढ़ हुआ पर उसके बारे में अधिक ज्ञात नहीं है।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक

सम्राट अशोक, भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक हैं। । अपने राजकुमार के दिनों में उन्होंने उज्जैन तथा तक्षशिला के विद्रोहों को दबा दिया था। पर कलिंग की लड़ाई उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई और उनका मन युद्ध में हुए नरसंहार से ग्लानि से भर गया। उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया तथा उसके प्रचार के लिए बहूत कार्य किये। सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म मे उपगुप्त ने दीक्षित किया था। उन्होंने देवानांप्रिय, प्रियदर्शी, जैसी उपाधि धारण की। सम्राट अशोक के शिलालेख तथा शिलोत्कीर्ण उपदेश भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह पाए गए हैं। उसने धम्म का प्रचार करने के लिए विदेशों में भी अपने प्रचारक भेजे। जिन-जिन देशों में प्रचारक भेजे गए उनमें सीरिया तथा पश्चिम एशिया का एंटियोकस थियोस, मिस्र का टोलेमी फिलाडेलस, मकदूनिया का एंटीगोनस गोनातस, साईरीन का मेगास तथा एपाईरस का एलैक्जैंडर शामिल थे।३२२ ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू चाणक्य की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी। २९८ ई. पू. में सलेखना उपवास द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपना शरीर त्याग दिया।अशोक (२७३ ई. पू. से २३६ ई. पू.)- राजगद्दी प्राप्त होने के बाद अशोक को अपनी आन्तरिक स्थिति सुदृढ़ करने में चार वर्ष लगे। इस कारण राज्यारोहण चार साल बाद २६९ ई. पू. में हुआ था।वह २७३ ई. पू. में सिंहासन पर बैठा। अभिलेखों में उसे देवाना प्रिय एवं राजा आदि उपाधियों से सम्बोधित किया गया है। मास्की तथा गर्जरा के लेखों में उसका नाम अशोक तथा पुराणों में उसे अशोक वर्धन कहा गया है। सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने ९९ भाइयों की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था, लेकिन इस उत्तराधिकार के लिए कोई स्वतंत्र प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है।

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